" अशुब " अशुब क्मा है ? अशुब शब्द का भानव जीवन भें आगभन कैसे हुआ? अशुब शब्द सुनने भें ही ककतना बमावह, डय उत्ऩन्न कयने वारा रगता है ? क्मों? कोई कामय कयने को आऩ जा यहे हैं औय अचानक कुछ अशुब घटित हो जाए, कल्ऩना बी
ककतनी बमावह है । भैं सभझाता हू आऩको कक आख़िय इस अशुब के ऩीछे क्मा बेद है ? प्रत्मेक भनुष्म कोई बी कभय ककसी पर की प्राप्तत की इच्छा से कयता है । आज वो द्वाऩयमुग वारा सभम सभातत हो गमा है जफकक बगवान श्रीकृष्ण का मे कहना था कक कभय कयो, पर की इच्छा ना कयो।
आज प्रत्मेक इॊसान मह तो चाह यखता ही है कक उसके प्रत्मेक कभय का कोई ऩरयणाभ (पर) आए अपऩतु सुखद आए मह रारसा (इच्छा) बी यखता है । इॊसान का भप्ततष्क चरामभान होता है जो कबी बी एक ओय प्तथय नही यह सकता रेककन
इस चरामभान भप्ततष्क के होते हुए बी इॊसान अऩने दै ननक जीवन भें घटित घिनाओ को अऩने भप्ततष्क के एक ककनाये भें कहीॊ सॊकुचचत रूऩ से सॊग्रह कयके यखता है मा कटहए कक वो बूरने का हय बयसक प्रमास कयता है ऩय कुछ अॊश जो भप्ततष्क के सीधे सॊऩकय भें आ जाता है उसे भप्ततष्क अऩने ऩास कही सॊग्रह कय रेता है ।
अफ इस अशुब शब्द के ऩीछे की दाततान सभझते हैं। कोई व्मप्क्त ककसी सुखद ऩरयणाभ की रारसा से ककसी कामय को कयने जा यहा हैं तबी उसका यातता एक कारी बफल्री काि दे ती है । वह इस दृष्िाॉत को बूर जाने का हय बयसक प्रमास कयता हैं रेककन कही ना कही क्मोंकक वह इस अशुब से अवगत था तो उसके ना चाहते हुए बी मह दृष्िाॉत उसके भप्ततष्क के सीधे सॊऩकय भें आकय भप्ततष्क के ककसी एक छोिे से बाग भें कही सॊकुचचत रूऩ भें सॊग्रहीत हो जाता है । अफ वह व्मप्क्त उस कामय को कयता है रेककन चाहे कायण उसका हो मा कोई औय, उसे सपरता नही मभरती तफ अचानक ही उसे वो कारी बफल्री के यातता काि जाने वारा दृष्िाॉत तभयण हो आता है , औय वह कामय ऩूणय ना होने का सभतत दोष उस कायण के भत्थे भड़ दे ता है । आज के भनुष्म की सफसे फड़ी उऩरप्ब्ध मह है कक वो अऩनी बूर का प़्िम्भेदाय तवमॊ को ना फताकय कायकों को दोष दे ता है । दख ु द ऩरयणाभ के मरए भानव द्वाया ऐसे कायक ही अशुब कहरातें हैं। दस ू ये शब्दों भें मटद कहा जाए तो भनुष्म के कभय के परतवरूऩ प्रातत दख ु द ऩरयणाभों के मरए गैय-प़्िम्भेदाय कायक अशुब कहराते हैं। ऐसे कायकों को "अशब ु " की श्रेणी भें सॊग्रहीत कय मरमा जाता है । जैसा नाभ से ही ज्ञात होता है अशुब (अ+शुब): प्जसके होने से शुब ना हो।
मा कटहए कक अगय आऩको आऩके ककसी कामय भें सपरता ना मभरे तो आऩकी ढार को अशुब कहते हैं।
जफ आऩ आऩके ककसी कामय के बफगड़ने का कायण अशुब को भान रेते हैं तफ ऐसी प्ततचथ भें व्मप्क्त अक्सय इस फात का प्रचाय कयता है । कबी आऩके साथ ऐसा हुआ है कक आऩ ककसी कामय को कय यहे हो औय आऩके फड़े आऩको अशुब की सॊज्ञा दे ते हुए आऩको उस कामय को कयने से योकें। मकीन भाननए अगय आऩ उनसे ऐसा ना कयने के ऩीछे की मथोचचत
वजह ऩूछेंगे तो उनका उत्तय मा तो मह होगा कक हभें नही ऩता, मा कपय ऐसे कामों को कयने के मरए फड़े फु़िुगो की भनाही थी हाॉ इसके ऩीछे कोई तकय सॊफॊधी उत्तय तो नही टदमा ऩय इसे अशुब नाभ से सॊफोचधत ककमा, ऐसा उत्तय होगा। मकीन
कीप्जए मह फातें केवर प्रचाय की हुई होती है । प्रचाय के परतवरूऩ ऩीढ़ी दय ऩीढ़ी औय सभाज दय सभाज मह रोक दॊ श पैरा है औय प्रचाय के भाध्मभ से ही मह फातें आऩ तक आई।
" अशुब किसी दै वीम शक्ति िे रुष्ट हो जाने ऩय आऩिो मभरने वारा किसी प्रिाय िा िोई अमबशाऩ नही
है अपऩिु आऩिे औय हभाये जैसे अंधपवश्वासी व्मक्ति िे अंधपवश्वास औय झूठ फोरने िी प्रवपृ ि िे परस्वरूऩ जन्भा एि ऐसा संिट है , एि ऐसा योग है जो िेवर आऩिो औय हभें ही नही वयन संऩूर्ण सभाज िो बी इस योग से ग्रमसि ियिा है । "
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©रेखि: भमंि सतसैना (आगया, उिय-प्रदे श, बायि) ______________________________________________________________________ " अशुब - भमंि सतसैना " ______________________________________________________________________ Editing and Uploading by: भमंि सतसैना (Mayank Saxena) (Original Writer) आगया, उिय प्रदे श, बायि (AGRA, Uttar Pradesh, INDIA)
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